शिवाष्टक हिंदी अर्थ सहित | Shri Shivashtak in Hindi

शिवाष्टक हिंदी अर्थ सहित | Shri Shivashtak in Hindi

शिवाष्टक में भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया गया है। इसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों, उनके दिव्य गुणों, और उनकी कृपा का वर्णन किया गया है।

शिवाष्टकम  का पाठ करके हम भगवान शिव को प्रस्सन कर सकते हैं। रोजाना Shri Shivashtak का पाठ करने से हमें  सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Shri Shivashtak in Hindi

।। श्री गणेशाय नम:।।

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्‍वनाथं जगन्नाथनाथं सदानंदभाजाम् ।
भवद्बव्यभुतेश्वरं भूतनाथं शिवं शंकरं शंभूमीशानमीडे ॥१॥

गले रुंडमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जटाजूटगंगोत्तरंगैर्विशालं शिवं ॥२॥

मुदामाकरं मंडनं मंडयन्तं महामंडलं भस्मभूषाधरं तम् ।
अनादिं ह्यपारं महामोहमारं शिवं ॥३॥

तटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरिशं गणेशं सुरेशं महेशं शिवं ॥४॥

गिरिन्द्रात्मजासंगृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदासन्नगेहम् ॥
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वंद्यमानं शिवं ॥५॥

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदांभोजनम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं ॥६॥

शरच्चंद्रगात्रं गुणानंदपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णाकलत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं ॥७॥

हरं सर्पहारं चिताभूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम् ।
श्मशाने वसंतं मनोजं दहंतं शिवं ॥८॥

स्तवं य: प्रभाते नर: शूलपाणे: पठेत्सर्वदा भर्गभावानुरक्त: ।
सपुत्र धनं धान्यमित्रं कलत्रं विचित्र: समासाद्य मोक्षं प्रयाति ॥९॥

।। इति श्रीशिवाष्टकं सम्पूर्णम् ।।

 

Shivashtak PDF

 

यह स्तुति भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करने का एक माध्यम है इसलिए  Shivashtak in Hindi में अर्थ सहित लिखा है  ।

शिवाष्टक हिंदी अर्थ सहित

 

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्‍वनाथं जगन्नाथनाथं सदानंदभाजाम् ।
भवद्बव्यभुतेश्वरं भूतनाथं शिवं शंकरं शंभूमीशानमीडे ॥१॥

भगवान शिव, जो प्राणों के स्वामी, जगत के स्वामी और आनंद देने वाले हैं, जो सभी भूतों और भव (संसार) के स्वामी हैं, हम उन शंभू, ईशान, और शिव की आराधना करते हैं।

 

गले रुंडमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जटाजूटगंगोत्तरंगैर्विशालं शिवं ॥२॥

शिव के गले में रुद्राक्ष की माला और शरीर पर सर्पों का जाल है। ऐसे  महाकाल, गणेश के स्वामी और विशाल रूप वाले हैं। उनकी जटाओं से गंगा की धारा बहती है। हम उन शिव की आराधना करते हैं।

 

मुदामाकरं मंडनं मंडयन्तं महामंडलं भस्मभूषाधरं तम् ।
अनादिं ह्यपारं महामोहमारं शिवं ॥३॥

शिव के शरीर पर भस्म लगा हुआ है, और वह हमेशा आनंदित रहते हैं। वे आदि और अंत से परे हैं, महान मोह (माया) के संहारक हैं। हम उन शिव की आराधना करते हैं।

 

तटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरिशं गणेशं सुरेशं महेशं शिवं ॥४॥

शिव श्मशान में निवास करते हैं, उनके ठहाके से पापों का नाश होता है। वे हमेशा उज्जवल और प्रकाशमान रहते हैं। वे पर्वतों के स्वामी हैं और गणेश के पिता हैं। हम उन शिव की आराधना करते हैं।

 

गिरिन्द्रात्मजासंगृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदासन्नगेहम् ॥
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वंद्यमानं शिवं ॥५॥

शिव, जिनका आधा शरीर माता पार्वती के साथ है, पर्वत पर निवास करते हैं। वे सदा ही उनके भक्तों के घर में निवास करते हैं। ब्रह्मा और अन्य देवता भी उनकी पूजा करते हैं। हम उन शिव की आराधना करते हैं।

 

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदांभोजनम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं ॥६॥

शिव, जिनके हाथों में त्रिशूल और खोपड़ी है, जो अपने चरणों में झुके भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं, बैल पर सवार रहते हैं और देवताओं के प्रधान हैं। हम उन शिव की आराधना करते हैं।

 

शरच्चंद्रगात्रं गुणानंदपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णाकलत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं ॥७॥

शिव, जिनका शरीर शरद ऋतु के चंद्रमा के समान है, वे तीन नेत्र वाले, पवित्र और धन के स्वामी कुबेर के मित्र हैं। उनके जीवनसाथी माता पार्वती हैं और उनका चरित्र अद्भुत है। हम उन शिव की आराधना करते हैं।

 

हरं सर्पहारं चिताभूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम् ।
श्मशाने वसंतं मनोजं दहंतं शिवं ॥८॥

शिव सर्पों की माला धारण करते हैं, श्मशान में निवास करते हैं, और कामदेव को भस्म करते हैं। वे वेदों के सार और सदा निर्विकार हैं। हम उन शिव की आराधना करते हैं।

 

स्तवं य: प्रभाते नर: शूलपाणे: पठेत्सर्वदा भर्गभावानुरक्त: ।
सपुत्र धनं धान्यमित्रं कलत्रं विचित्र: समासाद्य मोक्षं प्रयाति ॥९॥

जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातःकाल भगवान शिव के इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे पुत्र, धन, अनाज, मित्र, और पत्नी की प्राप्ति होती है, और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

।। इति श्रीशिवाष्टकं सम्पूर्णम् ।।

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