Rudrashtakam [ रुद्राष्टकम ] | नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित - Hanuman Chalisa Lyrics

Rudrashtakam [ रुद्राष्टकम ] | नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित

आज से करीब 500 साल पहले स्वामी तुलसीदास ने Shiv Rudrashtakam को लिखा था, जिसे सुनने और महसूस करने से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है। इस लेख में रुद्राष्टकम का अर्थ के साथ-साथ पीडीएफ की डाउनलोड लिंक दी गई है।

Rudrashtakam [ रुद्राष्टकम ] | नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित

 

Rudrashtakam [ रुद्राष्टकम अर्थ सहित ]

Namami Shamishan Meaning in Hindi

 

[ नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म देवस्वरूपं । ]

[ निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकावासं भजेऽहं ।। 1 ।। ]

Amaamiishamiishaan Nirvaaṇaruupam Vibhun Vyaapakam Brahm Devasvaruupam .

Nijam Nirguṇam Nirvikalpam Niriiham Chidaakaashamaakaavaasam Bhajeऽham .. 1

अर्थ :- हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं. निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं। 

 

[ निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं । ]

[ करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहं ।। 2 ।। ]

Niraakaaramonkaaramuulam Turiiyam Giraa Gyaan Gotiitamiisham Giriisham . 

Karaalam Mahaakaal Kaalam Kṛpaalam Guṇaagaar Samsaarapaaram Natoऽham .. 2

अर्थ :- निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार करता हूं। 

 

[ तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं । ]

[ स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ।। 3 ।। ]

Tushaaraadri Sankaash Gowram Gabhiiram Manobhuut Koṭi Prabhaa Shrii Shariiram . 

Sphuranmowli Kallolinii Chaaruu Gangaa Lasadbhaal Baalendu Kanṭhe Bhujangaa .. 3

अर्थ :- जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है। 

 

[ चलत्कुंडलं भू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं । ]

[ मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।। 4 ।। ]

Chalatkunḍalam Bhuu Sunetram Vishaalam Prasannaananam Niilakanṭham Dayaalam . 

Mṛgaadhiishacharmaambaram Muṇḍamaalam Priyam Shankaram Sarvanaatham Bhajaami .. 4

अर्थ :- जिनके कानों में कुण्डल शोभा पा रहे हैं. सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं. सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं। 

 

[ प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं । ]

त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ।। 5 ।। ]

Prachanḍam Prakṛshṭam Pragalbham Paresham Akhanḍam Ajam Bhaanukoṭiprakaasham .

 Trayah Shuul Nirmuulanam Shuulapaaṇin Bhajeऽham Bhavaaniipatin Bhaavagamyam .. 5

अर्थ :- प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं। 

 

[ कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जानन्द दाता पुरारी । ]

चिदानंद संदोह मोहपहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।। 6 ।। ]

Kalaatiit Kalyaaṇ Kalpaantakaarii Sadaa Sajjaanand Daataa Puraarii .

 Chidaanand Sandoh Mohapahaarii Prasiid Prasiid Prabho Manmathaarii .. 6

अर्थ :- कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए। 

 

[ न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजंतीह लोके परे वा नराणां । ]

[ न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।। 7 ।। ]

Na Yaavad Umaanaath Paadaaravindam Bhajantiih Loke Pare Vaa Naraaṇaan . 

Na Taavatsukham Shaanti Santaapanaasham Prasiid Prabho Sarvabhuutaadhivaasam .. 7

अर्थ :- जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है. अतः हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए। 

 

[ न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं । ]

[ जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।। 8 ।। ]

Na Jaanaami Yogam Japam Naiv Puujaan NatoऽHam Sadaa Sarvadaa Shambhu Tubhyam . 

Jaraa Janm Duahkhowgh Taatapyamaanam Prabho Paahi Aapannamaamiish Shambho .. 8

अर्थ :-मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही. हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं. हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दुःख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुःखों से रक्षा कीजिए. हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं। 

 

।। श्लोक।।

[ रूद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हर तोषये । ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भुः प्रसीदति । ]

RuudraashṬAkamidam Proktam Vipreṇ Har Toshaye . Ye PaṬHanti Naraa Bhaktayaa Teshaan Shambhuah Prasiidati .

अर्थ :- जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं। 

 

.. Iti Shrii ShivaruudraashṬAkama ..
।। इति श्री शिवरूद्राष्टकम ।।

 

Rudrashtakam PDF

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