श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ अर्थ सहित 16 मंत्र | Sri Suktam PDF

श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ अर्थ सहित 16 मंत्र | Sri Suktam PDF

श्री सूक्त के 16 मंत्र से बना Shree Laxmi Suktam का उल्लेख वैदिक शास्त्रों में किया गया है । यह स्त्रोत पढ़ने से भक्तों को धन, ऐश्वर्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। Sri Suktam Path विशेष रूप से शुक्रवार के दिन और दीपावली जैसे शुभ अवसरों पर किया जाता है, जब लोग देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। इस पाठ का नियमित पाठ करने से दरिद्रता का नाश होता है और जीवन में स्थायी सुख-समृद्धि आती है।

श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ अर्थ 

Sri Suktam माँ लक्ष्मी की भक्ति करने के लिए एक महत्वपूर्ण और पवित्र स्तोत्र माना गया है। इस लेख में हम श्री सूक्त के 16 मंत्र का हिंदी अर्थ सहित प्रस्तुत करेंगे, जिससे आप स्त्रोत मंत्र का पाठ करके देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकें।

श्री सूक्त पाठ के लाभ

  1. धन और समृद्धि की प्राप्ति: श्री सूक्तम् का  नियमित पाठ करने से व्यक्ति को धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है ।
  2. सुख और शांति : इसका पाठ घर में सुख-शांति रखती है।
  3. दरिद्रता का नाश: यह पाठ दरिद्रता और अभाव को दूर करता है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: श्री सूक्तम् का पाठ व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शुद्धि में सहायक बनता है।

 

श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ अर्थ सहित 16 मंत्र | Sri Suktam PDF

Shree Suktam Path in Hindi : श्री सूक्त के 16 मंत्र

श्री सूक्त हिंदी अर्थ सहित नीचे दिया गया है:

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥1

अर्थ: हे अगनी देव, मुझे सोने जैसे रंग वाली, हिरन जैसी सुंदर, सोने और चांदी के गहने धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान उज्जवल, स्वर्ण मयी लक्ष्मी देवी को प्रदान करो।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरूषानहम्॥2

अर्थ: हे अगनी देव, मुझे ऐसी लक्ष्मी प्रदान करें जो कभी नष्ट न हो। जिसके द्वारा मुझे सोना, गायें, घोड़े और बहुत कुस प्राप्त हों।

 

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमुदिताम्।
श्रीयं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्॥3

अर्थ: मैं श्री देवी का आह्वान करता हूं, जिनके पास घोड़ों से खींचा जाने वाला रथ है और हाथियों के मधुर गर्जन से वह प्रसन्न होती हैं। वह मुझे सुख और समृद्धि प्रदान करें।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारांआर्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थिता पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्॥4

अर्थ: मैं उस लक्ष्मी देवी का आह्वान करता हूं जो कमल में स्थित हैं, कमल के समान रंग की हैं, और जो सोने की दीवारों से घिरी हुई हैं, जो तृप्त और संतुष्ट करती हैं।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥5

अर्थ: मैं उस चमकदार और उज्जवल लक्ष्मी का आह्वान करता हूं, जो देवताओं द्वारा पूजित हैं, और जो समृद्धि और यश की प्रतिक हैं। हे लक्ष्मी, मुझे शरण में लो और मेरी दरिद्रता का नाश करो।

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः॥6

अर्थ: हे सूर्य के समान रंग वाली, तपस्या से उत्पन्न हुई लक्ष्मी, आपके लिए वृक्ष और फल लगे हैं। वे मेरी तपस्या के द्वारा मेरे बाह्य और आंतरिक दरिद्रता का नाश करें।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥7

अर्थ: मुझे देवताओं का सखा कीर्ति और धन के साथ प्राप्त हो। मैं इस राष्ट्र में प्रकट हुआ हूं, मुझे कीर्ति और समृद्धि प्रदान करें।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्॥8

अर्थ: मैं भूख और प्यास की अशुद्धता को नष्ट करता हूं, मैं ज्येष्ठा लक्ष्मी को नष्ट करता हूं। मेरे घर से दरिद्रता और असमृद्धि का पूर्ण नाश हो।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥9

अर्थ: मैं लक्ष्मी का आह्वान करता हूं, जो सुगंध की द्वार हैं, जो अजेय हैं, जो सदा पोषण देने वाली हैं, जो शक्ति का स्रोत हैं, और जो सभी प्राणियों की ईश्वरी हैं।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥10

अर्थ: मेरे मन की इच्छाएं पूरी हों, मेरे शब्द सत्य हों, पशु, अन्न और धन का रूप मुझ पर हो, लक्ष्मी और यश मेरे पास स्थायी रूप से निवास करें।

कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥11

अर्थ: कर्दम के द्वारा उत्पन्न हुए सभी प्राणियों का आह्वान है, कर्दम मेरे परिवार में उत्पन्न हो। लक्ष्मी मेरे कुल में निवास करें, आप पद्ममालिनी माता हो ।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥12

अर्थ: जल मेरे घर में शांति और स्निग्धता लाए। देवी लक्ष्मी, माता श्री, मेरे कुल में निवास करें।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥13

अर्थ: मैं उस आर्द्र, पुष्ट, पीले रंग की, कमल मालाधारी, चन्द्रमा जैसी स्वर्ण मयी लक्ष्मी का आह्वान करता हूं। हे अगनी देव, मुझे लक्ष्मी प्रदान करें।

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥14

अर्थ: मैं उस आर्द्र, करधारी, यष्टि को धारण करने वाली, सुवर्णमयी, हेम मालाधारी, सूर्य जैसी लक्ष्मी का आह्वान करता हूं। हे अगनी देव, मुझे लक्ष्मी प्रदान करें।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्विन्देयं पुरूषानहम्॥15

अर्थ: हे अगनी देव, मुझे ऐसी लक्ष्मी प्रदान करें जो कभी भी नष्ट न हो, जिसके द्वारा मैं सोना, गायें, दास, घोड़े और यस प्राप्त कर सकूं।

 

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्॥16

अर्थ: जो व्यक्ति पवित्र होकर और उत्तम प्रकार से घी से अगनी को तृप्त करता है और श्री सूक्त का पन्द्रह बार पाठ करता है, वह हमेशा श्री लक्ष्मी की प्राप्ति करता है।

श्री सूक्त पाठ इन हिंदी

Shree Suktam PDF

निष्कर्ष

श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ व्यक्ति को न केवल धन और समृद्धि प्रदान करता है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति में भी सहाय करता है।

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